रामू और सोने की मुर्गी
एक छोटे से गाँव में रामू नाम का किसान रहता था। वह बहुत मेहनती था लेकिन गरीब था। उसकी पत्नी गोमती हमेशा उसे धैर्य और संतोष रखने की सलाह देती। दोनों सादगी से जीवन बिताते, परंतु पैसों की कमी हमेशा खलती रहती।

एक दिन खेत में काम करते समय रामू को झाड़ियों में कुछ चमक दिखाई दी। उसने पास जाकर देखा तो वहाँ एक अद्भुत मुर्गी बैठी थी। यह साधारण मुर्गी नहीं थी, बल्कि उसके पंख सुनहरी चमक लिए हुए थे। रामू उसे घर ले आया। अगले ही दिन मुर्गी ने एक सोने का अंडा दिया। रामू और गोमती की खुशी का ठिकाना न रहा।
दिन पर दिन मुर्गी हर सुबह एक सोने का अंडा देती। धीरे-धीरे उनका जीवन सुधरने लगा। अब घर की तंगी दूर हो गई थी और रामू-गोमती सम्मानपूर्वक जीने लगे। लेकिन जैसे-जैसे उनकी हालत सुधरी, वैसे-वैसे रामू के मन में लालच भी बढ़ता गया।
रामू सोचने लगा—”अगर मुर्गी को काटकर उसके पेट से सारे सोने के अंडे एक साथ मिल जाएँ, तो मैं तुरंत अमीर हो जाऊँगा।” गोमती ने उसे समझाया—”रामू, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। अगर हम लालच करेंगे तो सब कुछ खो देंगे।” लेकिन रामू पर लालच का नशा चढ़ चुका था।
एक रात उसने निर्णय लिया और मुर्गी का पेट फाड़ दिया। परंतु अंदर कुछ भी नहीं था। न सोने के अंडे, न कोई खजाना। अब न तो उनके पास मुर्गी रही और न ही सोने के अंडे। रामू को अपनी गलती का गहरा पछतावा हुआ।

अगले दिन गाँव के बुजुर्ग साधु ने उसे समझाया—”रामू, लालच हमेशा विनाश का कारण बनता है। संतोष और धैर्य रखने वाला ही जीवन में सुखी रहता है।” रामू ने उनकी बात गांठ बाँध ली और ठान लिया कि वह आगे से केवल मेहनत और ईमानदारी से ही जीवन चलाएगा।
