📖 कहानी की शुरुआत
एक छोटे से गांव में एक संयुक्त परिवार रहता था – दादा-दादी, मम्मी-पापा और दो बच्चे – राजू और पिंकी। दशहरे का त्यौहार आने वाला था और गांव में रामलीला का आयोजन भी हो रहा था। राजू और पिंकी बहुत उत्साहित थे, लेकिन इस बार उनके पापा ने कहा कि वे शहर में काम के कारण नहीं जा पाएंगे।
राजू उदास हो गया, पर उसकी दादी ने मुस्कुराते हुए कहा,
“जब रामलीला देखने नहीं जा सकते, तो क्यों न हम अपनी घर की रामलीला करें?”
🎭 घर बना मंच, परिवार बने कलाकार
राजू और पिंकी ने मिलकर ड्रॉइंग रूम को मंच बना दिया। मम्मी ने कपड़ों से राम और सीता की पोशाक तैयार की। पापा, जो पहले मना कर चुके थे, अब रावण बनने को तैयार हो गए। दादी-नानी दर्शक बनीं और तालियाँ बजाने लगीं।
हर सदस्य ने अपनी भूमिका को दिल से निभाया। रामायण के संवाद, सीता हरण, राम-रावण युद्ध – सब कुछ हँसी-मज़ाक और प्यार के साथ प्रस्तुत किया गया।
💡 कहानी की सीख
राजू और पिंकी को एहसास हुआ कि असली खुशी बड़ी जगह या भीड़-भाड़ में नहीं, बल्कि परिवार के साथ बिताए गए प्यारे लम्हों में होती है।
त्यौहार का मतलब है साथ रहना, मिलकर हँसना और एक-दूसरे की अहमियत को समझना।
